यदि आपको कोई धमकी दे तो क्या करें

धमकी जैसे अपराधों के लिए भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 503 के तहत मामला दर्ज किया जाता है । जिसकी सजा का प्रावधान भारतीय दण्ड संहिता की धारा 506 में है। इस तरह के अपराध के दण्ड को दो भागों में विभाजित किया गया है।

1. सामान्य धमकी के लिए दो वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जायेगा।

2. यदि धमकी मृत्यु (जान से मारने) या ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाली है तब सात वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जाएगा।

अगर थाने में एफ आई आर दर्ज नहीं होती है तो इसके लिए सीआरपीसी में कुछ अन्य प्रावधान भी हैं

अगर कोई व्यक्ति संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की या व्यक्तिगत रूप से नुकसान पहुंचाने की धमकी देता है तो सीआरपीसी की धारा 106 के तहत कार्यपालक मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति से बंद पत्र पेश किए जाने की
अपेक्षा कर सकता है |

क्या है धारा 106 ?

धारा 106 - दोषसिद्धि पर परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति-
(1) जब सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय किसी व्यक्ति को उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी अपराध के लिए या किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण के लिए सिद्धदोष ठहराता है और उसकी यह राय है कि यह आवश्यक है कि परिशांति कायम रखने के लिए ऐसे व्यक्ति से प्रतिभूति ली जाए, तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दंडादेश देते समय उसे आदेश दे सकता है कि वह तीन वर्ष से अनधिक इतनी अवधि के लिए, जितनी वह ठीक समझे, परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित, बंधपत्र निष्पादित करे ।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अपराध निम्नलिखित हैं -

(क) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 8 के अधीन दंडनीय कोई अपराध जो धारा 153क या धारा 153ख या धारा 154 के अधीन दंडनीय अपराध से भिन्न है ;

(ख) कोई ऐसा अपराध जो, या जिसके अंतर्गत, हमला या आपराधिक बल का प्रयोग या रिष्टि करना है ;

(ग) आपराधिक अभित्रास का कोई अपराध ;

(घ) कोई अन्य अपराध, जिससे परिशांति भंग हुई है या जिससे परिशांति भंग आशयित है, या जिसके बारे में ज्ञात था कि उससे परिशांति भंग संभाव्य है ।

(3) यदि दोषसिद्धि अपील पर या अन्यथा अपास्त कर दी जाती है तो बंधपत्र, जो ऐसे निष्पादित किया गया था, शून्य हो जाएगा ।

(4) इस धारा के अधीन आदेश अपील न्यायालय द्वारा या किसी न्यायालय द्वारा भी जब वह पुनरीक्षण की अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो, किया जा सकेगा ।

सामान्य शब्दों में धारा 106 को समझने के लिए हम यह कह सकते हैं कि वह कार्यपालक मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति से बंद-पत्र पेश करवाकर पाबंद किया जा सकता है कि वह व्यक्ति ऐसा कोई भी कार्य ना करें जिससे लोक शांति भंग होती हो |

पाबंद करने का समय

कार्यपालक मजिस्ट्रेट के द्वारा धारा 106 के अंतर्गत 1 साल तक पाबंद किया जा सकता है |

इसका आदेश सीआरपीसी की धारा 116 के तहत किया जाता है जिसमें कार्यपालक मजिस्ट्रेट के द्वारा पहले इंक्वायरी की जाती है गवाहों के बयान लिए जाते हैं तथा कोई भी संबंधित डॉक्यूमेंट अगर हो तो उनका निरीक्षण भी किया जाता है


शिकायत करने की प्रक्रिया

जिस व्यक्ति को धमकी मिली है वह व्यक्ति एक एप्लीकेशन थाने में या एसडीएम के ऑफिस में पेश करें जिसमें धमकी मिलने का समय तथा धमकी मिलने के संबंध में सारी जानकारी उस एप्लीकेशन में अंकित करें, इस एप्लीकेशन पर दो गवाहों के साइन भी अगर कोई व्यक्ति करवा लेता है तो वह एप्लीकेशन शिकायत की दृष्टि से अच्छा रूप ले लेता है |
यदि कोई व्यक्ति एप्लीकेशन को एसडीएम के ऑफिस में पेश करता है तो उसे प्रारंभिक जांच के लिए थाने में ही भिजवाया जाता है

इसमें पुलिस के द्वारा प्रारंभिक जांच की जाती है गवाहों के बयान आदि लेकर उसकी एक रिपोर्ट तैयार करके एसडीएम ऑफिस में भिजवा दी जाती है जिस को शिकायतमय जाँच रिपोर्ट कहते हैं |
जब यह रिपोर्ट एसडीएम के पास में पेश की जाती है तो एसडीएम के द्वारा शिकायत करने वाले व्यक्ति को जमानत मुचलके पेश करने का आदेश दे दिया जाता है और कार्यवाही चालू कर दी जाती है मजिस्ट्रेट के लिए 6 माह में सारी कार्रवाई पूरी करना आवश्यक होता है यदि 6 माह में भी कार्यवाही पूरी नहीं होती है तो ऐसी कार्यवाही को निरस्त माना जाता है

अगर यह व्यक्ति कार्यवाही के दौरान भी धमकी दे तो क्या करें

अगर व्यक्ति जिसने पहले धमकी दी है उसकी शिकायत हमने करवा दी है लेकिन फिर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है और धमकी दे रहा है तो ऐसी स्थिति में उसके प्रोबेशन और जमानत के संबंध में जो भी उसको लाभ मिलने वाले थे वह रद्द किए जा सकते हैं

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